(Think, what is to think to do/Think out of the box)
चंद्रकांत के गर्मियों की छुट्टियां शुरु हो गई थी एक सप्ताह बीत चुका था | पढ़ाई लिखाई का बोझ था नहीं। घर पर टीवी देख देख कर मन ऊब गया था | घर पर लैंडलाइन टेलीफोन हुआ करता था मोबाइल का जमाना नहीं था| चंद्रकांत का हृदय घूमने-फिरने का करता, विद्यालय में जो उछल कूद होती थी, उसकी तरफ मन बार-बार जाता| मित्रों से मिले चंद्रकांत को कई दिन बीत गए थे | एक दिन उसने सोचा कि वह कुछ मित्रों से मिल आये | पिताजी जो घर के बॉस हुआ करते थे, उनके ऑर्डर के बगैर कुछ करना अर्थात दंड का अधिकारी बनना था | कई दिनों बाद उसकी अर्जी मंजूर हुई | चंद्रकांत शाम के समय अपने मित्रों से मिलने चला, उत्साह से प्रफुल्लित होकर, चंद्रकांत अपने परम मित्र शिवचरण के घर गया| द्वार खुलते ही जवाब आया वह अपने मामा के घर गया था| फिर वह दूसरे मित्र के घर गया, वह भी पिताजी के साथ बाजार गया हुआ था | चंद्रकांत का चेहरा अब उतरने लगा, खुशी की तेज पहले जैसी नहीं रही | फिर भी वह तीसरे दरवाजे पर दस्तक दिया, तो पता चला कि वह भी घर पर नहीं था, वह कोचिंग पर गया था | अब वह पूरी तरह ...